
“वो शराब पिए जा रहे थे,
मैं आँसू बहाए जा रही थी..!
वो गाड़ी चलाए जा रहे थे,
मैं ज़मीन पर घसीटी जा रही थी..!
वो गाना सुनते जा रहे थे,
मैं खूब रोए जा रही थी..!
वो बेफ़िक्र होके नशे में थे,
मैं फ़िक्र में दर्द से कराह रही थी..!
वो मस्ती में चूर थे,
मेरी हड्डियाँ चूर हो रही थी..!
वो कपड़ों से ढके थे,
मेरे कपड़े फटते जा रहे थे..!
वो पीठ को सीट पर टेक लगाए थे,
मेरी पीठ छिलती जा रही थी..!
वो उंगलियों से मोबाइल पर बिज़ी थे,
मेरी उंगलियाँ कटती जा रही थी..!
वो खुशी के नव वर्ष में मगन थे,
मैं मातम के नए साल में जा रही थी..!
वो साँसें थाम कर बढ़ा रहे थे,
मेरी साँसें कम हो रही थीं..!
वो पैरों से थिरक रहे थे,
मेरे पैर नोंचे जा रहे थे..!
वो सिर से सिर लड़ाकर जश्न में डूबे थे,
मेरा सिर फटा जा रहा था..!
वो ज़िंदगी की सीट पर बैठे थे,
मैं मौत की कार से लिपटी जा रही थी..!
वो लड़के थे,
मैं लड़की हूँ..!
वो लड़के थे, लड़कों से गलती हो जाती है,
मैं लड़की हूँ, लड़कियाँ गलती करें तो घर की बदनामी..!
कभी निर्भया, कभी श्रद्धा, कभी अंजली,
आख़िर क्यूँ लड़की ही मारी जाती है..?
कभी टुकड़ों में कभी घसीटकर..!
मुझ पर रहम करो,
मुझ पर तरस खाओ,
मुझे मौत की जगह ज़िंदगी चाहिए,
मुझे ग़मों की जगह हर ख़ुशी चाहिए..!
मैं कायर नहीं हूँ,
मुझमें अथाह हिम्मत है…!
तुम तो सुई चुभने पर भी “आह” करते हो,
लेकिन,
मैं 13 किलोमीटर घसीटने के बाद मरी हूँ..!
लेकिन,
अभी भी मेरी रूह ज़िंदा है..!
और,
फिर कहीं जन्म लूँगी,
फिर किसी हादसे में,
किसी इल्ज़ाम में,
किसी प्रेम के जाल में,
किसी लव-जेहाद में,
किसी दहेज की आग में,
किसी की कोख़ में,
किसी की निगाह में,
हिम्मत, हौसला रखकर फिर से मर जाऊंगी…!!”