
लेख
महात्मा गांधी ने कहा था, “शिक्षा वह है जो हमें जीवन के लिए तैयार करती है।” शिक्षा न केवल हमें ज्ञान प्रदान करती है, बल्कि यह हमें सोचने, समझने और अपने आसपास की दुनिया को बेहतर ढंग से समझने की क्षमता भी देती है। यह हमें अपने अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जागरूक करती है और हमें एक जिम्मेदार नागरिक बनाती है।
लेकिन, क्या हमारे समाज में शिक्षा वास्तव में सभी के लिए सुलभ है? क्या हमारे समाज में हर कोई समान रूप से शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्राप्त करता है? दुर्भाग्य से, इसका उत्तर नहीं है।
हमारे समाज में शिक्षा के क्षेत्र में कई समस्याएं हैं। पहला, आर्थिक असमानता है। गरीब परिवारों के बच्चे अक्सर शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं क्योंकि उनके परिवार के पास पर्याप्त संसाधन नहीं होते हैं। यह समस्या विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक होती है, जहां शिक्षा के अवसर कम होते हैं।
दूसरा, सामाजिक असमानता है। कुछ समुदायों के बच्चे शिक्षा प्राप्त करने में अधिक पिछड़े होते हैं क्योंकि उनके समुदाय में शिक्षा के प्रति जागरूकता कम होती है। यह समस्या विशेष रूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चों में अधिक होती है।
तीसरा, लिंग असमानता है। लड़कियों को अक्सर शिक्षा प्राप्त करने में अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। यह समस्या विशेष रूप से लड़कियों के लिए शिक्षा के अवसरों की कमी के कारण होती है।
चौथा, भौगोलिक असमानता है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम होती है। यह समस्या विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के अवसरों की कमी के कारण होती है।
इन समस्याओं को दूर करने के लिए हमें कई कदम उठाने होंगे। सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में अधिक निवेश करना होगा, और शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ानी होगी। हमें शिक्षा को अधिक समावेशी और समानता पर आधारित बनाने के लिए काम करना होगा।
समानता की सुनिश्चितता में शिक्षक विद्यालय तथा पाठ्यचर्चा
समानता की सुनिश्चितता की आवश्यकता की पूर्ति के लिए शिक्षा प्रदान करना शिक्षक, विद्यालय तथा पाठ्यचर्चा के लिए महत्त्वपूर्ण है। एक शिक्षक को विद्यार्थी में समाज के दूसरे वर्गों के बच्चों, विशेषकर अलाभान्वित तथा शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग के बच्चों के प्रति समानुभूति तथा समाज में महिलाओं की स्थिति की समझ को विकसित करने के योग्य होना चाहिए। सभी महिला और पुरुष समाज में समान सहभागी हैं, वे एक साथ रहते हैं तथा विकास करते हैं। समाज के सभी सदस्य एक-दूसरे पर आश्रित हैं। महिलाओं और पुरुषों के सभी बड़े और छोटे, महत्त्वपूर्ण अथवा गौण कार्य सामाजिक व्यवस्था के भाग होते हैं। सभी सदस्य अपने अधिकारों तथा सम्मान के सम्बन्ध में समान है।
मानव अधिकारों की अवधारणा का उदय मानव के तर्क तथा आस्था से परे हैं। समाज राजनीतिक व्यवस्थाओं द्वारा शांसित होते हैं जो इसके सदस्यों के कार्यों, संस्थाओं तथा संगठनों पर औपचारिक तथा अनौपचारिक दोनों तरह से नियंत्रण रखता है। एक चुनी हुई सरकार समाज द्वारा स्वीकार्य नियमों के अनुसार कार्य करती है। मानव स्वयं में भिन्न हैं, परंतु समानता की अवधारणा का आशय है कि सभी मानव समान हैं तथा उनके धर्म, जाति, पथ, रंग, लिंग, प्रजाति, जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव किए बिना समान समझे जाएँगे। समाज अपने सदस्यों, संस्थाओं तथा संगठनों की भूमिका को स्पष्ट करता है। सामान्यतः विद्यालयों में स्थान सीमित होते हैं तथा अभ्यर्थी बहुत अधिक होते हैं। सभी नामांकन लेना चाहते हैं। इस स्थिति में, समानता की अवधारणा का अर्थ है कि विद्यालय प्राधिकार को सभी बच्चों को उनके धर्म, जाति, पंथ, रंग, लिंग, जन्म स्थान का भेद किए बिना आवेदन पर विचार करना चाहिए तथा शैक्षिक प्रकृति के अन्य विशिष्ट गुणों के आधार पर उचित चयन करना चाहिए। समानता का अधिकार यह बल देता है कि प्रत्येक व्यक्ति लिंग, धर्म, जाति, रंग, भाषा आदि की भिन्नता के बावजूद समानता का दावेदार है।
यह सर्वमान्य है कि शिक्षा वो क्रांति है जो समाज में परिवर्तन लाने में सक्षम है। यह एक व्यक्ति को अपने परिवार समाज। राष्ट्र के साथ-साथ सम्पूर्ण दुनिया के प्रति भी अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों को समझने व उनका उपयोग करने की समझ प्रदान करती है। शिक्षा एक व्यक्ति को किसी भी स्थिति में खुद को सक्षम बनाने के लिए एक अलग दृष्टिकोण प्रदान करती है। शिक्षित व्यक्ति के अंदर स्वतः ही हिंसा, अन्याय, भ्रष्टाचार और अन्य विभिन्न सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ़ लड़ने की एक जिजीविषा पैदा होती है जिसकी वजह से वे समाज में सुधार हेतु अपना योगदान देते हैं। शिक्षा व्यक्ति को शांतचित्त गंभीर और बुद्धिमान बनाता है ।शिक्षा व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है समाज में एकरूपता लाती है यदि समाज का हर इंसान शिक्षित हो जाता है। तो समाज में इंसानों के बीच मौजूद कई तरह की असामान्यताएं स्वतः ही दूर हो जाएंगी। शिक्षा किसी भी व्यक्ति को सामाजिक आधार उपयोगी बनाती है और समाज में रहकर उसे बेहतर बनाने के लिए कुशलतापूर्वक योगदान करने मे उनकी मदद करती है एक शिक्षित व्यक्ति समाज के साथ-साथ राष्ट्र के लिए भी एक संपत्ति है। इसे इस तरह भी कहा जा सकता है कि शिक्षा व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की उपलब्धि और विकास की सीढ़ी है।
स्वामी विवेकानन्द ने कहा था, ” समस्त ज्ञान चाहे वो लौकिक हो या आध्यात्मिक मनुष्य के मन में है, परंतु प्रकाशित न होकर वह ढका रहता है अध्ययन से वह धीरे धीरे उजागर होता है।”
समाज में ज्ञान प्रसार शिक्षा के उल्लेखनीय पहलुओं में से एक है जब व्यक्ति शिक्षित होता है वह उस ज्ञान को स्वयं तक सीमित नहीं रखता बल्कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित करता है जिसकी वजह से हम अपनी आने वाली पीढ़ी को हमारे द्वारा प्राप्त ज्ञान दे पाते हैं, जिसे वे अपने ढंग से निखारते हैं। सदियों से चली आ रही शिक्षा को हस्तांतरण की यह परंपरा है। समाज को बेहतर से और भी बेहतर की ओर अग्रसर करती चली आ रही है ।समाज का जब एक व्यक्ति शिक्षित होता है तो उसके माध्यम से कई व्यक्ति शिक्षित होते हैं। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि शिक्षा आम जीवन को आशावान और बेहतर बनाने वाली प्रकाश की वह किरण है, जिसके माध्यम से मानव जीवन प्रकाशमय हो उठता है।