*भोले भंडार*
कष्ट हरो भोले भंडारी,
याचक आई शरण तुम्हारी।
पीले पुष्प करूँ मैं अर्पण,
निर्मल है मेरा मन दर्पण।।
यह जग है माया का डेरा,
सुख-दुख चलता रहता फेरा।
तुम हो कैलाशी के वासी,
तुम ही सत्य अटल अविनाशी।।
शीतल गंगा शीष विराजे,
गले सर्प की माला साजे।
हिमगिरि पर आलय शोभित,
कण-कण करता मन को मोहित।।
तुम ही सागर की जलधारा,
तुम ही नाविक पार उतारा।
याचक आई द्वार तिहारे,
सुन लो अर्जी नाथ हमारे।।
वरद ज्ञान का हमको दीजै,
चरण-शरण में अपने लीजै।
जीवन शरद-ग्रीष्म की छाया।
क्षणभंगुर मानव की माया।।
राग द्वेष सब भूल हमारी
कष्ट हरो भोले भंडारी।।