
गाज़ीपुर के जंजीरपुर गांव निवासी धर्मदेव यादव जी प्रवक्ता रहे हैं लेखक व कवि के रुप श्री धर्मदेव यादव जी ने साहित्य के क्षेत्र में बहुत नाम कमाया है इनका साहित्य के क्षेत्र मे एक लम्बा अनुभव है इनकी हर रचनाएं एक से बढ़कर एक है जिसका विवरण निम्न है
१ युग पुकार जो श्रमजीवी प्रेस बड़ी बाग गाजीपुर उत्तर प्रदेश से प्रकाशित है जिसके सम्बन्ध में संत साहित्य विशेषज्ञ, मूर्धन्य विद्वान,मनीषी ,प्रखर वक्ताएवं लब्ध प्रतिष्ठ साहित्यकार पूर्व प्राचार्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय भुड़कुड़ा गाजीपुर के डा इन्द्रदेव सिंह का कथन है कि -” श्री धर्म देव सिंह यादव ” धर्मेश जी ने प्रस्तुत काव्य संग्रह ” युग – पुकार ” में औपनिषदिक दर्शन की दिशा में एक पुष्प अर्पित किया है
अपने अन्त: करण में अनुभूत सत् को मानवता के कल्याणार्थ शब्द दिया है ।कविता तो मात्र अभिव्यक्ति का माध्यम है ।
आशा है पाठक उनका मंतव्य ग्रहण करेंगे ।
२ धर्मदेव यादव जी की दूसरी रचना ललित निबन्ध है जो अल्पना आफसेट बाराबंकीउत्तर प्रदेश से प्रकाशित है ।यह पुस्तक राजा राम मोहन राय केन्द्रीय पुस्तकालय कोलकाता द्वारा स्वीकृत है ।
३ धर्मदेव यादव जी की तीसरी रचना ” मानवता – वितान ” है ,जिसके सम्बन्ध मेंलब्ध प्रतिष्ठ साहित्यकार डा विवेकी राय का कथन है – ” धर्म देव सिंह यादव जी की रचना शीलता से अच्छी तरह परिचित हूं।इनका एक काव्य संकलन युग पुकार और एक ललित निबन्धों का संकलन ( मानवता और चरित्र निर्माण हेतु ) दो कृतियां पढ़ चुका हूं ।दोनों में लेखक को जो सकारात्मक आस्थावादी स्वर उभरा है उसने मुझे बहुत प्रभावित किया है ।पिछड़े जनपद के इस एकान्त साहित्य साधक के भीतर भावों का अक्षय कोष है और उसे व्यक्त करने की छटपटाहट उसे सीधी परन्तु प्रभावित करने ,प्रेरित करने अथवा प्रहार करने वाली भाषा है । युग चर्चा के साथ राष्ट्रीयता ,देश भक्ति ,ईश्वर प्रेम और मानवता जैसे विषयों पर लेखक ने कलम चलाई है ।उक्त विषय वस्तुओं को लेकर हीअपने इस तीसरे काव्य संकलन का निर्माता है । ये सब काव्य के विषय काव्य संसार से उठ गये हैंऔर सकारात्मकता की जगह नकारात्मकता का झण्डा बुलन्द है ।चारों ओर का ,बाहर भीतर का प्रदूषण उसे उद्वेलित कर ही देता है ।उद्वेलन कवि धर्म देव जी के भीतर है और व्यक्त भी हुआ है । परन्तु इस ध्वंस के साथ साथ निर्माण के निराशा के साथ आशा के दीपक भी इन्होंने जलाया है । इसलिए कविताएं सजोपयोगी बन गयी हैं । इनका ज्ञात अज्ञात प्रभाव समाज पर पड़ेगा ,ऐसी आशा है ।इस आशा के साथ कवि को इस तीसरी कृति के लिए बधाई देते हुए उसके इस संकल्प की प्रशंसा करता हूं कि –
कवियों की वाणी में दम हो ,
अब समाज के सब जन सम हों ।
४ चौथी रचना शान्ति पथ काव्य संग्रह है जो सृजन प्रेस सहारन पुर से प्रकाशित है यह भोजपूरी का पुट लिए सौ से अधिक कविताओं का संग्रह है ।
५ पांचवी रचना ” आत्मानुभूति ” भी कुछ मुक्तक कविताओं, लगभग छ : सौ दोहों तथा कुछ हाइकु कविताओं का काव्य संग्रह है ।यह भी सृजन प्रेस सहारन पुर से प्रकाशित है ।
6 छठीं रचना गद्य रचना है ,जो महापुरुषों के जीवन पर आधारित और जीवन को प्रेरणा प्रदान करने वाली है ।यह पेन मैन प्रेस बागपत उत्तर प्रदेश से प्रकाशित है ।
7सातवीं रचना ,मुक्ता हार काव्य संग्रह है जिसके सम्बन्ध में विख्या साहित्यकार कामेश्वर द्विवेदी का कथन है कि कवि के कथन से स्पष्ट लक्षित होता है कि कवि समाज में व्याप्त विसंगतियों के प्रति अत्यन्त व्यथित है ।समाज में प्रतिकूल परिस्थितियां आने पर छटपटाहट और तिलमिलाहट का उभरना स्वाभाविक है ।इनकी यह कृति मुक्ताहार धरोहर के साथ समाज के लिए एक दस्तावेज भी है ।
यह कृति भी पेन मैन प्रेस बागपत उत्तर प्रदेश से प्रकाशित है ।