
“रफ्ता-रफ्ता, मद्धम-मद्धम, धीरे-धीरे,
आँख मिचोली ज़िंदगी के तीरे-तीरे,
झोंपड़ियों में हाथों से आपके हर दिन,
रहें पहुँचते सोना-चांदी, हीरे-वीरे….
रहें जब तक क़ुदरत के हसीं नज़ारे,
रहें जब तक बुजुर्गों की दुआएं,
रहें जब तक नदियों की लहरें,
रहें जब तक परिंदों की सदाएँ,
रहें जब तक सूरज चंदा तारे,
रहें जब तक मिट्टी की सौंधी खुशबुएँ,
रहें जब तक मधुर संगीत की धुनें,
रहे जब तक कविताओं की शब्दावली,
रहे जब तक आत्माओं का अस्तित्व,
रहें जब तक ईश्वर की नेमतें,
रहे जब तक प्रेम की डोरियाँ,
रहें जब तक जीवन की पहेलियाँ,
रहें जब तक आसमान के बादल,
रहे जब तक माँ की दुआओं के आँचल,
तब तलक आपकी मौजूदगी हमेशा कायम रहे…!! “