फागुन आया मन हुलसा,
सखि खेलें रंग- गुलाल।
फूल खिले हैं रंग बिरंग के,
अलि- मंडराएं, आस- पास।
आम्र- मंजरी महके महुआ,
खिल सूर्ख हुआ है पलास।
कोयल कूके, बुलबुल गये,
बैठ पपिहरा गीत सुनाए।
गुटरु कबूतर घर के भीतर,
जाने क्या कयास लगाए।
डाली-डाली झूमे गाये,
पत्ते-पत्ते पर छाया उजास।
सुबह- सबेरे ऊषा मुस्कराये,
चहुंओर फैलाए प्रकाश।
श्याम सुंदर भर- भर पिचकारी,
मारे, भीगे राधा प्यारी !
उड़े गुलाल ,गूंजें चौताल,
फगुआ गायें फगुहारी।
मचे हुड़दंग,रंगे सब रंग,
होरी खेलें राश बिहारी।
रंग खेलें गोपिन संग ग्वाले,
फागुन में सब भये मतवाले।
रंग बरसत मृगताल की धुन पर,
भीगत सब नर – नारी।
कर स्नान बना श्रृंगार ,
रंग कपोल अबीर-गुलाल।
निकल बिहस गोरी की टोली,
प्रेम- मिलन खेलन को होली।