डाकू और सरकार मे अंतर क्या ,
दोनों अपने क्षेत्र में होनहार ।
डाकू डाका डाले घरों में अपार ,
सरकार लूटे जनता के घर द्वार ।
डाकू रिझाये अपने गांव द्वार ,
सरकार चमकाये कुछ जातियों के सहन द्वार ।
सरकार चलाये आंकड़ो की तलवार ,
डाकू फेंके बमो की बौछार ।
अफ़सर चाटे रस मलाई दार,
जनता फोड़े नमक के कंकड़ अपार ।
नेता बांटे तिकड़म का दोना ,
डाकू लूटे खाट और बिछौना ।
पिसती कुपढ़ी जनता न कोई खेवनहार ,
बरगलाती इनको सिर्फ जन श्रुति के सुविचार ।
शिक्षा के भी हो गए दो प्रकार ,
एक पेट भरने की, तो एक जन हरने की ।
दोनों को पूजे जनता सारी,
डर, कहीं चल न जाये नफ़रत की आरी ।
दोनों के दोस्त हैं कुशल व्यापारी ,
जिसका दण्ड झेलती मासूम जनता सारी।
न्यायाधीश का न्याय है क्या,
जनता तो आई नही हम करें क्या ।।