
आग !
आग !
जहां भी रहे
जलती है -जलाती है
आग !
जब पेट में लग जाए
चूल्हे जलाती है
जहां जाकर जले चूल्हा
वहां तक ले जाती है
यह आग गर्म बहुत है
क्रूरतम है सबसे
हर जीव को अपनी उंगली पर नचाती है
बुझाने आग पेट की बहुतेरों को जग ने
बनाते दास देखा है
आग !
जब सीने में लग जाए
प्यार के दीप जलाती है
महकते फूल खिलाती है
मधुर सपने दिखलाती है
जले ना हाथ किसी का
स्वयं खुद को जलाती है
यह आग नर्म बहुत है
पिघला देती है पत्थर भी
इसमें दम बहुत है
क्रूरतम को भी यह ता ता थैया नचाती है
बुद्ध, यीशु ,मुहम्मद ,गांधी को जग न
बुलाकर पास सीने में जलाते आग देखा है
आग !
जब दिमाग में लग जाए
पागल बनाती है
मशालें थम्हाती है
दुनिया को जलाती है
समझ पर कर लेती है कब्जा
सोचने पर बंदिश लगाती है
यह आग बेरहम बहुत है
जला डाले ये जिसे चाहे
कुछ भी इसके लिए बहुत कम है
बड़े बड़े पराक्रमियों को नचाया इसने मनचाहा
मार्क्स लेनिन माओ मुसोलिनी को जग ने
जलाते इतिहास देखा है
आग !
न तुमने पेट की ही बुझाई
न सीने में जला पाए
इतिहास रचने की पड़ी तुम सब को
लगाकर आग दिमागों में
तमाशे देखने वालों !