
रजनीश सिंह – कीट विशेषज्ञ
इंडो इजराइल सेंटर फॉर एक्सीलेंस
मटर दलहनी फसलों में मुख्य स्थान रखती है। इसका प्रयोग सब्जी व दाल के रूप में मुख्य रूप से की जाती है। मटर में प्रोटीन की मात्रा बहुत अधिक होती है। इसमें खनिज पदार्थ तथा विटामिन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। मटर के फसल में बहुत सारे हानिकारक कीट पतंग हमला करते हैं, जिससे कई बार मटर की फसल क्षतिग्रस्त हो जाता है। इन कीटों का रोकथाम तथा पहचान कैसे की जा सकती है इस लेख में दिया जा रहा है। किसान भाई इससे लाभ उठाकर अधिक उपज प्राप्त कर सकते हैं !
1. फली छेदक – इस किट की सुंडिया हरे रंग की होती हैं। फली छेदक की हानिकारक अवस्था सुंडिया होती हैं, जो हल्के हरे रंग के 3- 5 सेंटीमीटर लंबे होते हैं, तथा शरीर के ऊपर भूरे रंग की धारियां पाई जाती हैं। यह पहले पत्तियों को खाता है। फलियों के अवस्था में यह पहले कलि तथा फली में छेद करके नुकसान पहुंचता है। फलियों को खाते समय प्राय: इसका सर अंदर की तरफ तथा शरीर का भाग बाहर की तरफ लटका होता है। एक सुंडी 30-40 फलियों को नुकसान पहुंचता है !
नियंत्रण :
1. बुवाई समय से करें।
2. ज्यादा सिंचित फसल अत्यधिक प्रभावित होती है!
3. 2 से 3 वर्ष के अंतराल पर गर्मियों में खेत की जुताई अवश्य करें,ताकि इसकी सुंडी धूप लगने से नष्ट हो जाए !
4. लाइट ट्रैप ( प्रकाश प्रपंच ) लगाकर वयस्क कीटों को नष्ट करें।
5. प्रभावित फलियों को तोड़कर नष्ट करें।
जैविक नियंत्रण :
• जैविक कीटनाशकों का प्रयोग कर सकते हैं।
• 7- 8 ट्राईको कार्ड प्रति हेक्टेयर प्रति सप्ताह 4 बार लगाए ।
रासायनिक नियंत्रण :
• क्लोरोपायिरिफास 20 ई. सी. की 1.5 लीटर मात्रा या प्रोफेनोफैस 50 ई. सी. की 2 लीटर मात्रा को 600 – 800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करे !
2. एफिड ( माहू ) – यह हल्के रंग के छोटे-छोटे कीट होते हैं। नम मौसम में इनकी संख्या अधिक बढ़ती है। इसके लार्वा तथा व्यस्क दोनों ही कोमल तथा नए भागों पर आक्रमण करते हैं, फिर फलियों पर हमला करते है और रस चूसते है। अधिक प्रकोप होने पर प्रभावित भाग सूख जाते हैं और फलियां भी नहीं लगती। महू का आक्रमण जनवरी के बाद होता है।
नियंत्रण :
1. माहू का प्रकोप होने पर 0.25% मेटासिस्टाक्स का घोल बनाकर छिड़काव करें, 15 से 20 दिन पर दुबारा छिड़काव करें।
2. बवेरिया वेसियाना 2- 4 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 400- 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
3. तना मक्खी – यह छोटी एवं काले रंग की मक्खी होती है। इस कीट का मादा कोमल होता है जो की तना एवं शखाओ में छेद करके अंडे देता है। 2- 4 दिनों के बाद अंडे से सुंडी ( लार्वा ) निकलते है, जो सुरंग बनाकर मध्य सीराओ से होते हुए तने में प्रवेश कर जाते हैं। तना मक्खी के लारवा की अवस्था बहुत ही खतरनाक होती है। यह तना की कोशिकाओं को खाकर नष्ट कर देते हैं जिससे तना सूखने लगती है, और अंत में पूरा पौधा ही सूख जाता है।
नियंत्रण :
1. सड़ी हुई जैविक खाद का प्रयोग करें।
2. प्रभावित पौधों को नष्ट कर दें।
3. गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें।
4. इसकी बुवाई अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में करें।
जैविक नियंत्रण:
1. नीम के बीज का घोल 5% बनाकर प्रयोग करें, नीम आधारित कीटनाशक का प्रयोग करें।
रासायनिक नियंत्रण :
1. मिथाइल पाईरिथियान 0.05 % का छिड़काव करने से इस किट पर नियंत्रण पाया जा सकता है !