
पंजाब के अमृतसर में रहने वाले युवा कवि उपेन्द्र यादव का पहला काव्य संग्रह ‘तुम्हारे होने से’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। जिसकी साहित्यिक गलियारों में बहुत धूम है। इसे लोग हाथों-हाथ ले रहे हैं। उपेन्द्र यादव रेलवे वर्कशॉप में टेक्निशियन ग्रेड 1 पोस्ट पर कार्यरत भी हैं। अपने नौकरीपेशा कार्य के साथ-साथ लेखन के साथ भी सामंजस्य बनाने की कला इन्हें बखूबी आती है। इसी का प्रतिफल है कि उपेन्द्र यादव साहित्यिक गतिविधियों में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। उपेन्द्र यादव का जीवन संघर्षों की एक अन्तहीन दास्तां है। गाजीपुर, उत्तर प्रदेश के मूल निवासी उपेन्द्र यादव संघर्षों से जूझते हुए मार्ग के रोड़ों को अपनी सफलता की सीढ़ियाँ बनाकर आज यहाँ तक पहुँचे हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से परास्नातक उपेन्द्र यादव यूजीसी नेट, सीटेट तथा यूपीटेट इत्यादि तमाम पात्रता परीक्षाएँ कई बार क्वॉलिफाई कर चुके हैं। पत्र-पत्रिकाओं में फुटकर लेख एवं कविताएँ उनकी हमेशा छपती रहती हैं। अपने स्कूल के दिनों से लेकर सम्प्रति भारतीय रेलवे में अभी तक सामान्य ज्ञान, निबंध लेखन तथा भाषण प्रतियोगिता इत्यादि में पुरस्कृत होते रहते हैं। आवाम ख़बर के वरिष्ठ मीडिया प्रभारी यशवंत यादव से बातचीत करते हुए उपेन्द्र यादव ने अपने सद्यः प्रकाशित काव्य संग्रह के बारे में बताया कि- “तुम्हारे होने से’ काव्य संग्रह का प्रतिपाद्य किसी एक के होने से नहीं है। बल्कि सभी के होने से है। इस गुलिस्तां में सभी फूल एक समान हैं। सबका अपना महत्व है। ‘तुम्हारे होने से’ का अभिप्राय केवल प्रिय या प्रेयसी के होने से नहीं है, बल्कि प्रेमास्पद के साथ-साथ दलित, दमित, वंचित, शोषित, सर्वहारा, पसमांदा, हासिये के लोग, युवा, किसान, बेरोजगार, मजदूर, आदिवासी तथा शरणार्थी इत्यादि के होने से भी है। यह सबका समवेत स्वर है। आज आपके बीच सबकी आवाज बनकर यह पुस्तक प्रस्तुत करते हुए कवि का मन बहुत हर्षित हो रहा है।” भविष्य की अपनी योजनाओं का जिक्र करते हुए उपेन्द्र यादव ने बताया कि अभी उनके दो और काव्य संग्रह आने के लिए तैयार हैं। जिनकी स्क्रिप्ट पूरी हो चुकी है। साथ ही एक लघुकथा तथा कहानी की किताब पर भी पूरी शिद्दत से काम रहे हैं। इसके अलावा लोककथा पर भी काम करने के इच्छुक हैं। अपने राजनीतिक विचारों के बारे में उपेन्द्र यादव ने बताया कि निष्पक्षता उनकी कसौटी है। फिर भी वो ज्यादातर विपक्ष में ही बैठते हैं। क्योंकि वो जनता हैं और जनता की बात करते हैं। लेकिन अच्छा करने पर वो राजनेताओं को शाबाशी भी देते हैं। बारीकी से अध्ययन करने पर पता चलता है कि उपेन्द्र यादव सभी राजनीतिक दलों की आलोचना करते हैं। परन्तु जरूरत पड़ने पर तारीफ भी करते हैं। इसलिए उनके वामपंथी एवं दक्षिणपंथी मित्र कन्फ्यूज रहते हैं कि आखिर ये उपेन्द्र यादव किस पाले में खड़े हैं?