
एक शायरी बड़ी मशहूर है “मरहम लगाना हों तो गरीब के घाव पर लगा देना हकीम तो बहुत है अमीरों के इलाज के लिए “लेकिन यहाँ तो पुलिस और प्रशासन ऐसा जख्म दे रहे है कि आजीवन वो भर ही नहीं पाएगा पुलिस प्रशासन खुद न्यायधीश बनकर फैसला कर रहा है लागू भी कर रहा है न्यायालय की कोई जरूरत ही नहीं पुलिस का गठन जनता की रक्षा के लिए किया गया है। जैसे एक सैनिक सीमा पर देश की सुरक्षा करता है, वैसे ही एक पुलिस सीमा के भीतर नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा करती है। दंड प्रक्रिया संहिता पुलिस को असीमित शक्तियां देती है, जिससे राज्य द्वारा दिए गए अधिकारों की रक्षा की जा सके। राज्य का यह कर्तव्य होता है कि वह अपने नागरिकों की रक्षा करे। राज्य ऐसी रक्षा के लिए पुलिस का गठन करता है। पुलिस समाज में शांति व्यवस्था और कानून का राज बनाए रखने के प्रयास करती है लेकिन कानपुर की घटना ने न केवल वर्दी को बल्कि पूरे मानवता को शर्मसार कर दिया है सूबे के मुखिया एक तरफ कहते हैं कि बुलडोजर अपराधियों के लिए है लेकिन यहां तो एक गरीब के झोपड़ी को गिराकर आग लगाया जा रहा है और उसमे जलकर दो निर्दोष लोगो की मौत हो जाती हैं
और अफसर धीरे से भाग जा रहे है क्या निलंबन से उस परिवार का जख्म भरेगा ये नेता दो चार दिन चिल्लाएंगे फिर शान्त हो जायेगे लेकीन जिसका परिवार समाप्त हो गया उसके लिए तो ये सन्नाटे भी गुज उठेंगे इन सबसे तो यही लगता है गरीबों के लिए यह बुलडोजर हत्यारा बन गया है