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काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के दर्शन एवं धर्म विभाग में प्रो सतीश चंद्र दुबे के निर्देशन में पोस्ट डॉक्टर कर रहे गाजीपुर के लाल डॉक्टर सौरभ राय दिनांक 9 मार्च 2025 को दिल्ली के प्रधानमंत्री संग्रहालय में शिक्षा मंत्रालय एवं इंडियन कौंसिल ऑफ़ फिलोसॉफिकल रिसर्च द्वारा आयोजित फेलो मीट में, जाकर जिले एवं गांव के नाम को प्रतिष्ठित किया है, जहां देश भर के विद्वान् पहुंचे थे वहीं डॉक्टर राय ने भी अपने शैक्षणिक कार्य दार्शनिक राजा एवं राम राज्य की अवधारणा,(वाल्मीकि रामायण के विशेष संदर्भ में) विषय को सभी के समक्ष प्रस्तुत किया,
अपनी प्रस्तुतिकरण की शुरुआत उन्होंने वाल्मीकि रामायण के श्लोक से किया जिसमें उन्होंने कहा कि
सत्यमेकपदं ब्रह्म सत्ये धर्म: प्रतिष्ठित:
सतयमेवाक्षया वेदा: सत्येनावाप्यते परम।
सत्य ही प्रारूप शब्द ब्रह्म है सत्य में ही धर्म प्रतिष्ठित है सत्य ही अविनाशी वेद है और सत्य से ही परम ब्रह्म की प्राप्ति होती है
यथा दृष्टि शरीरस्य नित्यमेव प्रवर्तते। तथा नरेन्द्रो राष्ट्रस्य प्रभवः सत्यधर्मयोः ।।
जैसे दृष्टि सदा ही शरीर के हित में प्रवृत्त रहती है, उसी प्रकार राजा राज्य के भीतर सत्य और धर्म का प्रवर्तक होता है।
राजा सत्यं च धर्मश्च राजा कुलवतां कुलम् । राजा माता पिता चैव राजा हितकरो नृणाम् ।।
राजा ही सत्य और धर्म है। राजा ही कुलवानों का कुल है। राजा ही माता और पिता है तथा राजा ही मनुष्यों का हित करने वाला है।
यमो वैश्रवणः शक्रो वरुणश्च महाबलः । विशिष्यन्ते नरेन्द्रेण वृत्तेन महता ततः ।।
राजा अपने महान् चरित्र के द्वारा यम, कुबेर, इन्द्र और महाबली वरुण से भी बढ़कर है (यम केवल दण्ड देते हैं, कुबेर केवल धन देते हैं, इन्द्र केवल पालन करते हैं और वरुण केवल सदाचार में नियन्त्रित करते हैं, परन्तु एक श्रेष्ठ राजा में ये चारों गुण मौजूद होते हैं। अतः वह इनसे बढ़ जाता है)।
डॉ राय आगे कहते है कि तपःपूत ऋषियों, महर्षियों एवं कवियों की कर्मस्थली यह भारतभूमि अपनी अद्वितीय सभ्यता, संस्कृर्ति और साहित्य के लिए विश्वविख्यात है। यहाँ के ऋषियों-मुनियों और कवियों ने अपने तपोबल से जो कुछ देखा और अनुभव किया, उसी को उन्होंने अपनी रचनाओं में पूर्णरूप से अभिव्यक्त किया।
इसीलिए उनकी कृतियाँ कालजयी हैं। उनका अनुभव उनकी आत्मानुभूति का ही परिणाम होता है।
आत्म साक्षात्कार करने वाले ऐसे महापुरुषों की जन्मस्थली इस भारत भूमि समय-समय पर ऐसे ऋषियों महर्षियों ने जन्म लिया है जिन्होंने अपनी आदर्श कृतियों के माध्यम से दुखाक्रान्त मानव समाज के लिए सुख शांति का मार्ग प्रशस्त किया है। दिव्या पथ का साक्षात्कार करने वाले उन महर्षियों में वाल्मीकि का स्थान अग्रगण्य है जिन्होंने आदि महाकाव्य रामायण की रचना करके न केवल भारतीयों प्रत्युत समग्र भारतीयों को अमरत्व प्रदान किया है।
रामायण मानव मूल्य और नैतिक आदर्शों का वह प्रकाशस्तंभ है जो युगों युगों से मानव समाज के कल्याण हेतु उनका पथ प्रदर्शक बना हुआ है। भारतीय समाज के जनजीवन और चिंतन का इस ग्रंथ से घनिष्ठ संबंध है इसमें मानवी स्वभाव आचार व्यवहार तथा आदर्श गुणो का अनेक प्रसंगों में ऐसा मार्मिक वर्णन मिलता है इसमें त्याग तपस्या पराक्रम कर्तव्य निष्ठा की ऐसी उड़त प्रेरणा मिलती है जिससे मनुष्य की दृष्टि व्यापक हो सकती है रामायण की कथा आज भी न केवल भारतभूमि पर प्रत्युत विश्व के कोने-कोने में गूंज रही है।
महर्षि वाल्मीकि ने यह भविष्यवाणी की थी__
रावत स्थास्यन्ति गिरय: सरितश्च महीतले।
तावद्रामायाणकथा लोकेषु प्रचारिष्यति।
महर्षि वाल्मीकि ने प्रसिद्ध राम कथा के माध्यम से अपनी अलौकिक काव्य तूलिका द्वारा वेदों और उपनिषदों में वर्णित सर्वोच्च मानव संस्कृति के शाश्वत और स्वर्णिम तत्वों का एक आकर्षक, भव्य और अद्भुत चित्र प्रस्तुत किया है जो प्राचीन होते हुए भी नवीन है मानवीय होते हुए भी दिव्य है।