कृषि छात्रों के देश की सबसे बड़ी संगठन ‘अखिल भारतीय कृषि छात्र संगठन’ (AIASA) तथा वैश्विक रैंकिंग प्राप्त गलगोटिया विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसका विषय था: उद्यमिता, नवाचार और उच्च शिक्षा में अवसर। यह कार्यक्रम 28 सितंबर 2024 को गलगोटिया यूनिवर्सिटी के कृषि कॉन्फ्रेंस हॉल में आयोजित हुआ। उल्लेखनीय है कि वैश्विक रैंकिंग प्राप्त इस अग्रणी शिक्षण संस्था में विभिन्न संकायों में लगभग 40000 चालीस हजार छात्र शिक्षा प्राप्त कर अपना करियर संवार रहे हैं।
मुख्य अतिथि और प्रमुख वक्ता के रूप में देश के प्रसिद्ध किसान वैज्ञानिक और ‘केंद्रीय हर्बल एग्रो मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया’ (चैम्प) के राष्ट्रीय अध्यक्ष, डॉ. राजाराम त्रिपाठी उपस्थित थे। साथ ही, कई प्रमुख हस्तियां, जैसे विष्णु गुप्ता, संस्थापक Farms2Families, शाजिया खान, संस्थापक dDaksha, और सुधीर भीनचार, शोधार्थी, IARI, भी आमंत्रित थे। विश्वविद्यालय के कृषि संकाय के डीन डॉ हरिशंकर गौर तथा डॉ सहदेव सिंह एवं आईसा उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष इस कार्यक्रम के संयोजक थे।
कार्यक्रम का शुभारंभ मेहमानों के स्वागत गीत और उन्हें पुष्प गुच्छ भेंट करके किया गया। इसके बाद, डॉ. त्रिपाठी और अन्य विशिष्ट अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन किया गया।
कार्यक्रम संयोजक डॉ. सहदेव सिंह ने डॉ. त्रिपाठी का परिचय देते हुए कहा कि उन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। वे अपने नए-नए सफल प्रयोगों के कारण विश्वभर में मशहूर हैं। वे भारत के सर्वाधिक शिक्षित किसान माने जाते हैं और पांच बार ‘सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार’ पाने वाले इकलौते किसान हैं। साथ ही, वे अखिल भारतीय किसान महासंघ (AIFA) के राष्ट्रीय समन्वयक भी हैं और भारतीय कृषि नीति पर उनके सुझाए गए कई विचारों को सरकार ने स्वीकार किया है। वर्तमान में वे राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड (NMPB) के सदस्य भी हैं।
कार्यक्रम में डॉ. त्रिपाठी को भारतीय कृषि और किसानों की दशा सुधारने में उनके तीन दशक के अथक प्रयासों के लिए गलगोटिया यूनिवर्सिटी के कृषि विभाग के प्रमुख डॉ. सहदेव सिंह और अन्य गणमान्य विभूतियों द्वारा सम्मानित किया गया।
डॉ. त्रिपाठी के मुख्य विचार:
1. *भारत की खेती संकट में:* उन्होंने बताया कि कृषि उत्पादन के आंकड़ों से ऐसा प्रतीत हो सकता है कि भारतीय खेती का विकास हो रहा है, लेकिन असलियत में यह एक गहरे संकट की ओर बढ़ रही है। एक तरफ कृषि मशीनरी, रासायनिक खाद, बीज और दवाइयों का व्यापार फल-फूल रहा है, और आधुनिक तकनीकों जैसे कि ड्रोन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, एग्रो रोबोटिक्स, हाइड्रोपोनिक्स और पॉलीहाउस जैसी ऊंची तकनीकों का उपयोग हो रहा है। लेकिन दूसरी तरफ, *किसान की एक दिन की आमदनी मात्र ₹27 है और 85% कृषि भूमि रासायनिक खादों से बंजर हो चुकी है। हर साल 10 से 12 हजार किसान आत्महत्या* कर रहे हैं।
2. *कृषि में अवसरों की भरमार*: डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि जहां सबसे ज्यादा समस्याएं होती हैं, वहां कुछ नया कर गुजरने की सबसे ज्यादा संभावनाएं होती हैं। भारतीय कृषि में चुनौतियों के साथ ही अपार अवसर भी हैं। छात्रों को खेती के क्षेत्र में सफल करियर बनाने के लिए डरने की जरूरत नहीं है।
3. *अखिल भारतीय कृषि सेवा की आवश्यकता*: उन्होंने अखिल भारतीय कृषि सेवा (All India Agricultural Service) के गठन पर जोर दिया, जिससे कृषि नीतियों को व्यावहारिक रूप से लागू किया जा सके। उन्होंने बताया कि उनका संगठन AIFA और AIASA पिछले एक दशक से इस दिशा में काम कर रहे हैं, और उम्मीद है कि जल्द ही प्रशासन इस आवश्यकता को समझेगा।
4. *कृषि अधोसंरचना एवं शोध में फंड की कमी*: डॉ. त्रिपाठी ने कृषि बजट में कटौती और शोध के लिए फंड में कमी की आलोचना करते हुए कहा कि यह देश की खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित हो सकता है।
कार्यशाला के अंत में छात्रों और विशेषज्ञों ने कृषि क्षेत्र में उद्यमिता और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए उपयोगी विचार साझा किए।