
चाँद में भी दाग़ है (काव्य-संकलन)
प्रकाशक- ऑथर्स इंक पब्लिकेशन, रोहतक
लेखक- दिलीप कुमार चौहान ‘बाग़ी’
समीक्षक- डॉ. निरंजन कुमार यादव
दिलीप कुमार चौहन ‘बाग़ी’ अपनी कविताओं की तरह ही जितने सहज हैं उतने ही गंभीर भी हैं। उनके पास जीवन के अनुभव की पूँजी है। आज हिंदी के लिखत -पढ़त की दुनिया में ‘बाग़ी’ की एक सक्रिय और हस्तक्षेपकारी उपस्थिति है। इनके पहले काव्य संग्रह ‘चाँद मैं भी दाग़ है’ को पाठकों ने हाथों -हाथ लिया है। एक साथ जीवन के इतने बिम्ब, इतने रूप एक साथ इसमें प्रस्तुत हुए हैं कि यह कृति बन पड़ी है। जीवन के साथ समाज, राजनीति और आस्था के साथ गहन मानवीय चेतना सूक्ष्म एवं स्पस्ट काव्यात्मक अभिव्यक्ति हुई है, जो अन्यत्र दुर्लभ है।
संग्रह की पहली कविता ‘माँ’ है जिसमें कवि ने माँ के त्याग और महत्व को बताया ही है लेकिन उसके साथ यह भी बताया है कि सिर्फ माँ का गुणगान करने मात्र से हम मातृभक्त नहीं हो सकते। माँ इस दुनिया की सबसे खूब सूरत चीज है। उसकी अनुपस्थिति में हम उसकी यादों को सजातें हैं लेकिन उसके अरमानों को भूल जाते हैं। बाग़ी ने माँ के यादों के साथ उसके अरमानों को जिंदा रखने वाले कवि हैं-
माँ की ममता के आँचल के वो दिन जिन्दा रख,
माँ के अरमानों की हर एक तस्वीर ज़िन्दा रख।
बनाकर अपने आंगन में एक भोली सी मूरत,
माँ से मिलने की आखरी तुम उम्मीद ज़िन्दा रख।।
जो जीवन के लिए जरूरी हैं वो आज अपेक्षित हैं। श्रमशील लोग लगातार हमारे नीति नियंताओं के द्वारा उपेक्षित हो रहे हैं। किसान जो कभी अन्नदाता के सम्मान से आदरपूर्वक जीवन जीते थे आज वह आत्महत्या करने पर मजबूर हैं। बाग़ी जी का संवेदनशील मन किसानों की स्थिति को अपना विषय बनाता है-
मैं किसान हूँ, में गुमनाम हूँ
मैं समाज का बोझ और वक्त का गुलाम हूँ
मैं किसान हूँ……
बाग़ी जी के पास अनुभव की पूंजी है। अनुभूतियों से जो रचनाएं निकलकर आती हैं उनकी प्रमाणिकता स्वतः प्रमाणित होती है। बाग़ी जी पेशे से शिक्षक हैं। विद्यार्थियों के मनोवृति को ठीक से समझते हैं। तकनीकी ने जहाँ जीवन को आसान आसान बनाया है वही दूसरी तरफ उन्हें मूल्यहीनता की ओर ढकेला भी है। बाग़ी उसको शिनाख़्त करने वाले कवि हैं-
स्तर गिर रहा है यारों बच्चों में पढ़ाई का
आया है ज़माना जबसे फैशन और मोबाइल का …
राजनीति समाज मे बहुत कुछ तय करती है। यह हमारे देश की उत्थान एवं पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। लेकिन आज के राजनेता अपने हित के आगे राष्ट्रहित को दर किनार कर जातें हैं। अब देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए नहीं अपितु परस्पर बैर फैलाकर अपनी राजनीति को चमकाने में लगे रहतें हैं-
लगता है कि देश की एकता में नेता अब दरार कर देंगे,
कुछ हिंदुओं से तो कुछ मुसलमानों से करार कर लेंगें।
अरे खाली हाथ ही हम जीत गए थे आज़ादी की लड़ाई,
मगर एटम बम और मिसाइलों को भी ये बेकार कर देंगें..
ऐसी बहुत सारी कविताएँ हैं जिसमें जीवन और समाज का सत्य उदघाटित हुआ है। अतः हम निष्कर्षतः कह सकते हैं कि बाग़ी जी की कविताएं अपने प्रभाव, अर्थ और वैचारिकता से सम्पन्न हैं।
इन पत्थरों को मेरे राहों से न हटाए कोई
ठोकरें देकर ये संभालना सिखाते हैं मुझे….
– डॉ. निरंजन कुमार यादव
महिला पी. जी. कॉलेज,
गाजीपुर, उत्तरप्रदेश।