आज दिनांक 9 अगस्त 2024 को राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय गाज़ीपुर में काकोरी ट्रेन एक्शन डे के अवसर पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया । संगोष्ठी में विषय प्रवर्तन करते हुए प्राचीन इतिहास विभाग के डॉ विकास सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 9 अगस्त को ‘काकोरी ट्रेन एक्शन डे ‘ का आयोजन किया जा रहा यह घटना आज से ठीक सौ साल पहले लखनऊ के निकट स्थित काकोरी नामक स्थान पर 9 अगस्त 1925 को ट्रेन से ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूटने से संबंधित थी। क्रांतिकारी इस लूट में कामयाब तो हो गए थे लेकिन अंग्रेजों की त्वरित कार्यवाही से वे गिरफ्तार हो गए और उन्हें फांसी की सजा मिली।
कार्यक्रम की मुख्य वक्ता इतिहास विभाग की डॉ सारिका सिंह ने कहा कि आज़ादी का संघर्ष बहुआयामी चरित्र लिए हुए था। अनेक प्रकार के संघर्ष एक साथ ,एक दूसरे से मिलते एवम् टकराते हुए देश के भीतर और देश के बाहर चल रहे थे। नेतृत्व के स्तर पर कांग्रेस का एक उदारवादी चेहरा था तो समानांतर और सामयिक क्रांतिकारी चेहरा भी था। दोनों अपनी परिधि और अंतश्चेतना में समान रूप से गतिशील थे। दोनो में कोई टकराहट शायद इसलिए नहीं दिखती थी क्योंकि दोनों का लक्ष्य एक था वह था भारत की आज़ादी। बंगाल विभाजन के बाद भारत में शुरू होने वाला क्रांतिकारी आंदोलन धीरे धीरे पूरे भारत में लोकप्रिय हो गया था । प्रथम विश्व युद्ध आरम्भ हो गया, महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत आ गए। उनके प्रारम्भिक आंदोलनों की सफलता से दूसरे दशक में क्रांतिकारी मार्ग थोड़ा कम भरोसे वाला रह गया।
महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ अनीता कुमारी ने कहा कि असहयोग आंदोलन की विफलता और इसके अकस्मात अंत से एक बार पुनः क्रांतिकारी विचार प्रभावी होने लगे। गांधीवादी रणनीति प्रश्नों के घेरे में आ गयी। क्रांतिकारी पुनः संगठित होने लगे। इस बार भी बंगाल और पंजाब मुख्य केंद्र बने ,इस पृष्ठभूमि में क्रांतिकारी संगठित होने शुरू हुए। सभी प्रांतों के क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल , भगतसिंह ,चंद्रशेखर आज़ाद के आह्वान पर अक्टूबर 1924 में कानपुर में एकत्र हुए। यहीं सभी ने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन नामक संगठन बनाने की घोषणा की। इसका उद्देश्य औपनिवेशिक सत्ता को उखाड़ फेंकना था । यह उद्देश्य तभी हासिल किया जा सकता था जब युवा वर्ग इस संगठन की ओर आकर्षित हों । क्रांतिकारियों ने युवाओं को संगठित करने के लिये अभियान चलाया उन्हें सफलता भी मिलने लगी लेकिन आर्थिक समस्या का समाधान नहीं कर सके। फिर अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए अंग्रेजो के खजाने को लूटने की योजना बनायी और काकोरी ट्रेन एक्शन डे ‘ अगला कदम था। 9अगस्त 1925 को सरकारी खजाना सहारनपुर से लखनऊ लाया जा रहा था। जब 8 डाउन पैसेंजर जब रात के 2 बजे के लगभग काकोरी स्टेशन पहुंची तो क्रांतिकारियों ने इसे लूट लिया। हालांकि लूटी गई धनराशि 8000 रुपये के लगभग ही थी लेकिन यह अंग्रेजो के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया।
इस घटना में मुख्य रणनीतिकार रहे चंद्र शेखर आज़ाद फरार हो गए लेकिन अन्य क्रांतिकारी पकड़े गए। चार लोंगो – राम प्रसाद बिस्मिल ,अशफ़ाक़ उल्ला , रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी को मुख्य अभियुक्त बनाया। घटना के समय केवल 10 लोग थे जिन्होंने जर्मनी में बनी माउज़र बंदूकों से हमला किया । केवल एक यात्री की गोली लगने से मृत्यु हुई थी अधिकांश अंग्रेजों ने मौन रहकर लूट होते देखा था।लेकिन जब कार्यवाही आरम्भ हुई तो मनमथनाथ गुप्त सहित 40 अन्य क्रांतिकारी भी अभियुक्त बनाए गए। इन्हें अलग अलग जेल में रखा गया। न्याय का दिखावा कर चारों मुख्य अभियुक्तों को फांसी की सजा सुना दी गयी। सबसे पहले राजेंद्र लाहिनी को फांसी हुई फिर रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल में , रोशन सिंह को इलाहाबाद में जो काकोरी कांड में शामिल ही नही थे तथा अशफ़ाक़ उल्ला को फैज़ाबाद की जेल में दिसम्बर 1927 में फांसी पर लटका दिया गया। ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’. ‘शहीदों की चिताओ पर लगेगें हर बरस मेले ‘ मेरा रंग दे बसंती चोला’ गाते हुए क्रांतिकारी खुशी से फांसी के फंदे को चूम लिए। शचीन्द्रनाथ सान्याल को कालापानी की सजा हुई। कार्यक्रम के अंत में काकोरी ट्रेन एक्शन की 100वीं वर्षगांठ के शुभारंभ अवसर पर इस पर आधारित लघु फ़िल्म का प्रदर्शन कराते हुए विद्यार्थियों को काकोरी ट्रेन एक्शन के सम्बंध में चलचित्र के जरिये महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक जानकारियों से रूबरू भी कराया गया। इस अवसर पर रेंजर प्रभारी डॉ शिव कुमार, डॉ अमित यादव, डॉ रामनाथ केसरवानी डॉ गजनफर सईद, डॉ एकलाख खान आदि प्राध्यापकगण एवं इतिहास विभाग, प्रज्ञा रेंजर्स, राष्ट्रीय सेवा योजना, एवं एनसीसी से जुड़ी छात्राएं प्रमुख रूप से उपस्थित रहीं