
राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय गाजीपुर में शोध अनुभाग द्वारा शोध प्रबंध जमा पूर्व मौखिकी (प्री सबमिशन सेमिनार) का अयोजन किया गया। इस अवसर पर डॉ निरंजन कुमार यादव के निर्देशन में शोध कार्य कर रहे श्री अरुण प्रताप यादव ने अपने शोध प्रबंध ” जगदीश चंद्र का कथा साहित्य और हाशिए का समाज” के महत्व को बताया। श्री अरुण प्रताप ने अपने शोध में बताया है कि हिन्दी का अखिल भारतीय स्वरूप हिन्दी भाषी राज्य से इतर हिन्दी भाषी लोग और रचनाकार बनाते हैं। जगदीश चंद्र ऐसे ही साहित्यकार हैं। हिन्दी साहित्य में जगदीश चंद्र नाम के तीन साहित्यकार हुए हैं। एक नाटककार हैं और दूसरे नई कविता पत्रिका के संपादक कवि हैं लेकिन इन दोनों के अलग कथाकार जगदीश चंद्र हैं। जिन्होंने ‘धरती धन न अपना’ लिखकर साहित्य में अपनी मुक्कमल पहचान बनाई। अभी तक इनके एक दर्जन उपन्यास, तीन नाटक, एक कहानी संग्रह और कुछ फुटकर निबंध प्रकाशित हैं। उत्तर भारत खासकर हरियाणा, पंजाब, हिमाचल और कुछ हिस्सा कश्मीर के जन जीवन और सामाजिक – आर्थिक स्वरूप का जैसा चित्रण इनके कथा साहित्य में मिलता है वह हिन्दी साहित्य की उपलब्धि है। सामाजिक विज्ञान और मानविकी में जब से सबाल्टर्न स्टडी पर ध्यान गया है तब से हाशिए का विमर्श साहित्य के केंद्र में आ गया है, लेकिन साहित्य में यह स्त्री और दलित तक ही सीमित रह गया है, जबकि ऐसा नहीं है। हाशिए का दायरा बहुत विस्तृत है। वे सभी लोग हाशिए के समाज के अंतर्गत आते हैं जिनकी समाजिक उपयोगिता तो है लेकिन उनका सामाजिक महत्व नहीं के बराबर है, हालांकि विमर्श काल में यह अवधारणा शिथिल हुई है। हिन्दी भाषी लेखकों के यहां विमर्श दूसरे रूप में उभरता है जबकि गैर हिन्दी भाषी लेखकों के यहां दूसरे रूप में लेकिन कारण प्रायः एक ही होता है – सामाजिक मान्यताएं और हमारी – आपकी मानसिकताएं। जगदीश चंद्र का लेखन इस दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है कि भारत के विभाजन की त्रासदी पर और उससे उपजी सामाजिक -आर्थिक समस्या पर, शरणार्थी जीवन पर सबसे प्रामाणिक ढंग से लिखा है। इसका एक बड़ा कारण यह है कि वह स्वयं इस त्रासदी को झेले थे। मैंने मुख्य रूप से स्त्री, दलित, किसान – मजदूर, शरणार्थी आदि को केन्द्र में रखकर इनकी रचनाओं का आलोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। प्राचार्य प्रो अनीता कुमारी ने कहा कि एक शोधार्थी को ऐसा ही अपने काम पर विश्वास होना चाहिए। श्री अरूण प्रताप यादव जीका तथ्यपरक एवं विश्लेषण युक्त शोध प्रबन्ध है। हिन्दी की विभागाध्यक्ष डा संगीता मौर्य ने कहा कि अरुण प्रताप जी ने अपने शोध के माध्यम से जगदीश चंद्र के लेखन के महत्व को तो उजागर ही किया है साथ ही साथ उत्तर भारत में रह रहे हाशिए के जन जीवन की वस्तुनिष्ठ रूप में यथार्थ अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है। मीडिया प्रभारी डा शिवकुमार ने बताया कि साहित्य सिर्फ मनोरंजन युक्त कविता – कहानी तक ही सीमित नहीं होता, जब तक उसका वृहत्तर सामाजिक सरोकार नहीं बनता तब तक वह महत्त्वपूर्ण साहित्य नहीं होता। अरूण जी अपने उद्बोधन में इस तरफ़ इशारा करते हुए यह बताया कि प्रेमचंद की तरह ही जगदीश चंद्र हिन्दी के महत्त्वपूर्ण कथाकार हैं। इस अवसर पर डॉ शिखा सिंह, डा नेहा कुमारी, श्री राधेश्याम कुशवाहा आदि ने भी महत्त्वपूर्ण प्रश्न पूछे और अपनी राय प्रकट किए।