राजकीय महिला स्नाकोत्तर महाविद्यालय गाज़ीपुर में प्रो चौथीराम यादव को दी गई श्रद्धांजली
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राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय गाजीपुर में आज लोक धर्मी आलोचक प्रो चौथीराम यादव को श्रद्धांजलि दी गई। विदित हो कि प्रो चौथीराम यादव ने लगभग एक दर्जन से अधिक आलोचनात्मक पुस्तक लिखकर तीसरी परंपरा को स्थापित किया है। वह एक श्रेष्ठ एवं लोकप्रिय अध्यापक के साथ प्रखर चिंतक एवं जनोन्मुख विचारक थे। ऐसे व्यक्ति के जाने से समूचा हिंदी परिवार शोकाकुल है। श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए मीडिया प्रभारी डा शिव कुमार ने कहा कि प्रो चौथीराम यादव हाशिए के समाज की सघनतम उपस्थिति को पूरी परंपरा में पहचानने वाले आलोचक थे। जे एन यू में उनसे कई बार मुलाकात हुई है। वह बहुत अध्ययनशील थे , लेकिन ज्ञान का कोई अभिमान नहीं था मगर दृढ़ता गजब की थी। डा शशिकला जायसवाल ने कहा कि चौथीराम जी जीवन के अंतिम साँस तक सक्रिय रहे, यात्राएँ करते रहे, लिखते-पढ़ते रहे और गोष्ठियों -संगोष्ठियों में भागीदारी करते रहे ।मध्यकालीन संत साहित्य के वह विशेषज्ञ थे, लेकिन समकालीन लेखन पर भी पैनी नज़र रखते थे। डा विकास सिंह ने कहा कि
वह निहायत सरल, पारदर्शी और उदार व्यक्तित्व के धनी थे और विरोधी विचारों से संवाद करने के मामले में निहायत जनवादी थे। इसी क्रम में डा निरंजन कुमार यादव ने कहा कि चौथीराम यादव जी जैसे लोग अब बहुत कम बचे हैं जिनके साथ बेलागलपेट बहस की जा सकती हो और आश्वस्त रहा जा सकता हो कि तमाम मतभेदों के बावजूद रिश्तों की आत्मीयतापूर्ण गरमाहट पर कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। असहमति का साहस और सहमति का विवेक उन्हें औरों से विशिष्ट बनाया। प्राचार्य जी अपने उद्बोधन में कहा कि एक भरपूर,स्वाधीन व सक्रिय साहित्यिक जीवन जीते हुए प्रो चौथीराम यादव ने इस जीवन को अलविदा कहा है।हासिये के समाज से लेकर समाज के हासिये तक को समझने में उनकी समान गति थी। यही कारण है कि वह समकालीन आलोचना में सबसे चमकीले सितारे रहे। वह बौद्धिक स्तर पर बुद्ध व अंबेडकर को एक साथ समझते थे। सोशल मीडिया की दुनिया में भी गजब की रुचि थी। हम कह सकते हैं कि उन्होने जीवन की धज्जियां उड़ाई है। डा अकबरे आज़म ने कहा कि वे एक ‘पब्लिक इंटेलेक्चुअल’ थे। ‘आलोचनात्मक-विवेक’ के सहारे ही साहित्य के साथ-साथ अपने समय-समाज को समझकर उसका वास्तविक मूल्यांकन किया जा सकता है। अपने समय-समाज की चिंता न करने वाला व्यक्ति कितने भी बड़े पद पर क्यों न हो, वह ‘वास्तविक मनुष्य’ नहीं हो सकता है। इसी क्रम में डा शंभू शरण प्रसाद नेकहा कि ‘मनुष्यता’ की ख़ातिर आवाज़ बुलंद करना सबके बूते की बात भी नहीं है, इसमें बहुत नुकसान है, जोख़िम है। यह जोख़िम आजीवन प्रो चौथीराम ने उठाया।अब प्रतिबद्ध, आबद्ध और सम्बद्ध लोग कम ही बचे हैं। खैर, अब शायद ही कोई दूसरा चौथीराम होगा। इस अवसर पर डा सारिका सिंह, प्रो उमाशंकर प्रसाद, डा दिवाकर मिश्र, डा अखलाक अहमद आदि प्राध्यापकों के साथ छात्राओं ने भी श्रद्धांजलि अर्पित किए।