पुरी, ओडिशा के प्रसिद्ध Shri Jagannath Temple के महाप्रसाद को ऑनलाइन बेचने के प्रस्ताव को राज्य सरकार और मंदिर प्रशासन ने सख्त मना कर दिया है। हाल ही में कुछ संगठनों ने मंदिर प्रशासन से महाप्रसाद और सूखे प्रसाद को ऑनलाइन माध्यम से भक्तों तक पहुंचाने का आग्रह किया था, लेकिन इस पर कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने स्पष्ट किया कि महाप्रसाद की पवित्रता बनाए रखने के लिए इस प्रस्ताव को अस्वीकार किया गया है।
महाप्रसाद की पवित्रता का खतरा
कानून मंत्री ने कहा कि यह एक अच्छी सोच थी कि महाप्रसाद को विश्वभर के भक्तों तक पहुंचाया जाए, लेकिन ऑनलाइन बिक्री से उसकी पवित्रता पर असर पड़ने का खतरा रहता है। महाप्रसाद का धार्मिक महत्व गहरा है और इसे आदर और सम्मान के साथ ही रखा जाना चाहिए। परंपरा के अनुसार महाप्रसाद केवल मंदिर परिसर में ही बेचा जाता है। यदि इसे ऑनलाइन बेचा गया तो इसकी पवित्रता और धार्मिक गरिमा पर प्रश्नचिह्न लग सकता है।
सरकार का स्पष्ट रुख और भक्तों से अपील
पृथ्वीराज हरिचंदन ने कहा कि सरकार किसी भी तरह से ऑनलाइन बिक्री को समर्थन नहीं देती और न ही इसे प्रोत्साहित करती है। उन्होंने भक्तों से अपील की है कि वे स्वयं पुरी जगन्नाथ मंदिर आएं, महाप्रसाद प्राप्त करें और देवताओं का आशीर्वाद लें। उन्होंने यह भी बताया कि अभी तक महाप्रसाद की ऑनलाइन बिक्री पर रोक लगाने वाला कोई कानून नहीं बना है। इसके लिए जगन्नाथ मंदिर अधिनियम, 1955 में संशोधन आवश्यक होगा।
बिना अनुमति ऑनलाइन बिक्री के आरोप
इस बयान के बीच कुछ संगठनों पर बिना अनुमति के महाप्रसाद की ऑनलाइन बिक्री के आरोप भी लगे थे। कानून मंत्री ने साफ किया कि सरकार ने कभी भी इस तरह की ऑनलाइन बिक्री को मंजूरी नहीं दी है और न ही वह इसे अनुमति देने वाली है। यह कदम महाप्रसाद की शुद्धता और धार्मिक भावना को बनाए रखने के लिए उठाया गया है।
महाप्रसाद की परंपरा और उसकी गरिमा
पुरी जगन्नाथ मंदिर का महाप्रसाद भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक प्रतीक है। इसके वितरण में पवित्रता और पारंपरिक विधियों का पालन किया जाता है। प्रशासन का मानना है कि महाप्रसाद का ऑनलाइन वितरण इस पवित्रता को ठेस पहुंचा सकता है। इसलिए इस पर रोक लगाकर पारंपरिक रीति-रिवाजों को सुरक्षित रखा जा रहा है ताकि मंदिर और उसके प्रसाद की गरिमा बनी रहे।