
प्रोफेसर दिलीप दीपक के पहली पुस्तक”गजले बोता हुं” के प्रकाशित होने पर दिलीप दीपक के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए लिखते हुए महिला पीजी कॉलेज के प्रोफेसर डॉ निरंजन यादव ने बताया कि दिलीप दीपक बहुत ही सृजनात्मक रहने वाले व्यक्ति हैं। साहित्य सृजन से लेकर साहित्यिक आयोजनों में उनकी सक्रियता देखते बनती है। थोड़े आत्मसंकोची एवं संयमी हैं। इसलिए अपनी रचनाओं पर कम बात करते हैं। पढ़ते खूब हैं। देश – दुनिया और साहित्य में क्या हो रहा है इसकी पुख्ता जानकारी रखते हैं। छंद बद्ध और छंद मुक्त कविताएं लिखते हैं। खूब लिखते हैं लेकिन छपने की कोई हड़बड़ी नहीं दिखाते। यदि किसी परिचित ने इनकी रचनाओं की खामियों को चिन्हित कर दिया तो वह उसे यथावत स्वीकार कर लेते हैं। जबरिया अपनी प्रसिद्धि या महत्ता स्थापित नहीं करते। इनका मानना है कि आलोचना रचनात्मकता के लिए आवाश्यक है। ऐसे कवि के प्रथम काव्य संग्रह का स्वागत है।आप भी दिलीप को सुनिए – पढ़िए और अपनी राय दीजिए।
गाज़ीपुर की धरती साहित्य के लिए बहुत उर्वर है। इस भूमि पर उगे इस पौध का स्वागत करिए और इसे अपने स्नेह और सहचार्य में वृक्ष बनने दीजिए।